शुक्रवार, 24 जनवरी 2014

‘नौटंकी’ का संकट

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‘राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय’ द्वारा आयोजित ‘भारत रंग महोत्सव’ (भारंगम) के सोलहवेंसंस्करण की शुरुआत जहां महत्त्वपूर्ण बदलावों, ठोस योजनाओं और कुछ नया करने की इच्छा शक्ति के साथ हुई तो इससे कम से कम इतना तो स्पष्ट हो गया कि इस नाट्य प्रशिक्षण संस्थान की कार्य-पद्धति को लेकर समय-समय पर जो प्रश्न-चिन्ह लगाये जाते रहे थे वे एक हद तक उचित थे और प्रायः उनमें सुधार की पर्याप्त संभावनाएं भी थीं। इस वर्ष के ‘भारंगम’ में लोक नाट्यरूपों की प्रस्तुतियों की बढ़ती संख्या को भी इसी बदलाव और परिवर्तन के अभिलक्षण के रूप में ग्रहण किया जाना चाहिए।
‘सोलहवें भारंगम’ के तीसरे दिन उत्तर प्रदेश के ‘बृजकला संस्थान’ द्वारा नौटंकी ‘अमर सिंह राठौर’ की प्रस्तुति कई दृष्टिकोणों से महत्त्वपूर्ण और आकर्षित करने वाली रही मुगलकालीन पटकथा पर आधारित इस नौटंकी के केंद्र में शाहजहां के सिपहसालार अमर सिंह राठौर रहे सांप्रदायिक सद्भाव, वफादारी और वीरता के अनेक दृश्यों के माध्यम से यह प्रस्तुति अपना सामाजिक उद्देश्य तो प्रकट करती ही है लेकिन हास्य-व्यंग्य के अनेक मार्मिक दृश्यों द्वारा समकालीन स्थितियों पर गहरा एवं सटीक प्रहार इसके प्रभाव में और भी वृद्धि करता है। नगाड़े, ढोलक और हारमोनियम की नाद में ऊंचे स्वर और लंबे तान में गायन ने दर्शकों का खूब मन मोहा और अमर सिंह राठौर की प्रस्तुति सफल और सार्थक रही
वस्तुतः किसी भी समाज का उसकी परंपराओं से अलग होना अपने जड़ से कटने और अपनी पहचान के खोने जैसा है यद्यपि यह भी सही है कि मृत परंपरा को ढोना उचित नहीं है लेकिन बिना परंपरा का समाज भी उचित नहीं होता है परंपरा से ही समाज और समाज से ही परंपरा बनती है और ये लोक नाट्यरूप हमारी विकासशील परंपरा की ही आधार और पहचान हैं और ऐसे में इनका संरक्षण आवश्यक है क्योंकि परंपरा से विमुख पश्चिम का हाल किसी से छिपा नहीं है
लेकिन आज इसमें भी दो राय नहीं कि नौटंकी का दायरा बहुत ही सीमित हो चुका है इसके अनेक सामजिक-आर्थिक कारण जिम्मेदार रहे हैं परंतु पूर्व में नौटंकी उत्तर भारत की प्रमुख नाट्यरूप रही है और आमजन के चित्त के संस्कार का प्रमुख माध्यम भी लेकिन पिछले लगभग दो दशकों से भी अधिक समय से आर्थिक सशक्तिकरण, मध्यवर्गीय चेतना के उफान और एक ख़ास किस्म की उत्तर-आधुनिकता के बढ़ते दुष्प्रभाव ने दर्शकों के एक बड़े वर्ग को अपने घेरे में ले लिया और फलस्वरूप उनके मनोरंजन की भूख फिल्मों, गानों और अन्य अनेक माध्यमों से पूरी होने लगी समग्र रूप से इन सभी माध्यमों ने दर्शक वर्ग की सुरुचि और चेतना में एक प्रकार का परिवर्तन ला दिया है फलतः आज लोककलाएं लोगों के मनोरंजन के साथ शिक्षा और संस्कार का महत्त्वपूर्ण साधन नहीं बन पा रही हैं और नौटंकी समेत अनेक लोकनाट्य शैलियों को आज अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए कड़ा संघर्ष करना पड़ रहा है
नौटंकी जन-मानस से जुड़ी हुई जीवंत, लोकप्रिय और प्रभावशाली लोकविधा है। अतः सरकार के अलावा सामाजिक संस्थाओं की ओर से भी इसे संरक्षण और प्रोत्साहन मिलना चाहिए। लेकिन नौटंकी के विस्तार और प्रशिक्षण के लिए खोले गए अनेक सरकारी संस्थानों का हाल भी किसी से छिपा नहीं हैं स्पष्ट उद्देश्य और प्रभावी गति के बिना ही रेंग रहे ऐसे संस्थानों का हश्र भी अन्य सरकारी योजनाओं के जैसा ही है। नौटंकी को इस संकट से उबारने हेतु निश्चय ही कुछ ठोस प्रयासों की आवश्यकता है
वस्तुतः पुरानी नौटंकियां कम से कम पचास या कई तो सौ साल से भी ज्यादा की पुरानी हैं उनका न तो किसी प्रकार से संरक्षण किया जा रहा है और न ही आज नई नौटंकियों की रचना हो रही है अतः नई नौटंकियां लिखने हेतु प्रोत्साहन के साथ ही पुराने का संरक्षण भी करना होगा पुरानी नौटंकियों में भाषा के स्तर पर भी कई समस्याएं हैं जिन्हें दूर किया जाना चाहिए इस क्षेत्र में कुशल और व्यावसायिक प्रशिक्षण संस्थान न होने से भी नए लोगों का इसमें प्रवेश नहीं हो पा रहा हैं जो कुछ लोग इस क्षेत्र में आ रहे हैं वे अपने निजी शौक के कारण आ रहे हैं न कि इस क्षेत्र की संभावनाओं के कारण। असल समस्या तब खड़ी होती है जब इस क्षेत्र में रोजगार न होने के कारण वे इसे बीच में ही छोड़कर चले जाते हैं इन्हीं शौकिया लोगों की जिद के सहारे किसी तरह से नौटंकी जीवित है। अतः अभिनेताओं को प्रोत्साहन और उचित पारिश्रमिक देने के साथ नौटंकी संगठनों को आर्थिक मदद मुहैया करानी होगी और तब जाकर इनकी माली हालत में कुछ सुधार होगा और हम पुनः अपने अतीत से खुद को जोड़ सकेंगे
नौटंकी से जुड़े लोगों के लिए भी यह आवश्यक है कि वे आज की जरूरतों को समझें और उस अनुसार नई नौटंकियों की रचना करें पूर्व के प्रेम-प्रसंगों या ऐतिहासिक-पौराणिक कथाओं में ही आज का व्यक्ति अपने जीवन का सच खोजे, यह आवश्यक नहीं है! समय बदल रहा है और ऐसे में अगर नौटंकी को आज के समय के साथ चलना है तो उसे भी अपनी विषयवस्तु में बदलाव करना होगा बदली हुई परिस्थियों के अनुसार नए विषयों को चुनकर नई नौटंकियों की रचना करनी होगी साथ ही नौटंकी के अभिनय में भी स्वरूपगत बदलाव लाना होगा क्योंकि आज केवल गायन और संगीत से ही काम चलने वाला नहीं है इसी प्रकार से आधुनिक रंगमंच के तत्वों को समंजित करके भी नौटंकी अपने स्वरूप में कुछ सकारात्मक बदलाव ला सकती है
नए-नए प्रयोग होने चाहिए और इसलिए पारसी रंगमंच की छाया से बाहर निकलकर नौटंकी को नए प्रयोगों को आत्मसात करना होगा अगर ऐसा न हुआ तो वह दिन दूर नहीं जब नौटकी इतिहास का हिस्सा भर रह जायेगी और लोग इसे भूलने में तनिक भी देर न करेंगे

धर्मेन्द्र प्रताप सिंह
यू.टी.ए. (हिंदी विभाग)
दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली – 07




3 टिप्‍पणियां:

  1. Ye acha hai log filmo ki taraf apna rujhan badha rhe h wahi dusri or ek ye v h jiski aawsyakta h Jo logo ko rangmanch se jodna hmare itihas ko dekh kar kuch shiksha mile Jo jeevan me kaam aayegi

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  2. नौटंकी की वर्तमान दशा(दुर्दशा) पर विचार की गुंजाइश | उसकी समस्याओं की ओर स्पष्ट संकेत | तत्कालीन समय से कदम-ताल के लिए, उसके विभिन्न पक्षों में परिवर्तन की जरूरत | उसकी ऐतिहासिक महत्ता और वर्तमान अर्थवत्ता पर प्रकाश | सरकारी-तंत्र का तथाकथित सहयोग | इत्यादि |
    इन तमाम बड़े किन्तु उपेक्षित मुद्दों पर कम शब्दों के साथ उपस्थित आपकी लेखनी को पढ़ना न केवल दिलचस्प रहा बल्कि एक जरूरी मसले को और अधिक जानने की इच्छा भी हो रही है | आपका यह लेख अच्छा लगा | जरूरी लगा | शुभकामनाएं.......|

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  3. मंगलवार 25/03/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    आप भी एक नज़र देखें
    धन्यवाद .... आभार ....

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